ओस की बूँद की तरह होती हैं बेटिआं,
माँ-बाप की आन होती हैं बेटिआं,
भाईओं की जान होती हैं बेटीआं,
गुलाब सी महकती हैं,
चिडीओं सी चहकती होती हैं बेटिआं,
हिमालय सी कठोर,रूई सी कोमल,होती हैं बेटिआं,
कभी बेटी,बहन,पत्नी,मां के,रिश्तों को निभाती हैं बेटिआं०
क्यों जन्म से पहले मरती है,
गर्भ में कई सपनें सजाती है,
क्यों भीं पर बिना कसूर,
मारी जाती हैं बेटिआं०
बेटा हो तो बड़ा होकर देता है जुदाई
,माँ-बाप को रोटी देती हैं बेटिआं०
उनके दर्द पर रोती हैं,
रौशन करेगा बेटा तो बस,
एक कुल को,
दो-दो कुलों की लाज को धोती हैं बेटिआं०
-वनादाना शर्मा
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