कभी लगे सहेली
कभी बनती है पहेली
आखिर ये जिन्दगी है क्या?
कभी लगे पास, कभी दूर
होती है कभी हमारे साथ
कभी मिलने जाते हैं
देती नहीं साथ
आखिर ये जिन्दगी है क्या?
क्यों हमें तड़पाती
क्यों हो जाते हैं इसके
हाथों मजबूर ।
कभी देती है खुसिआं
कभी देती है गम
कभी हँसाए , कभी रुलाए
कभी तो यह अपना
असली रूप दिखाए !
आखिर ये जिन्दगी है क्या?
- वंदना शर्मा
Thursday, November 12, 2009
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ज़िन्दगी एक प्रश्न-चिन्ह नहीं होती बल्कि हमारी अपनी ही इच्छा हमसे ओझल होती है. और हम पागल जो चीज़ आज और अब में बसी होती है उसे हम भविष्य में ढूंढते रहते हैं. खुद से पूछो क्या चाहती हो अब और बस अब ! बाकी बातें जीने के लालच में मर जाती हैं.
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