कभी हंसाते तो कभी रुलाते रिश्ते,
जीने का सहारा तो कभी दर्द का समन्दर,
किस किस पड़ाव से गुजरते हैं.
कभी मखमली धूप से,
कभी फूलों से महकते गुलाब से रिश्ते,
खुसी देते हैं कभी गम,
न जाने कितनी बार दर्द के साथ,
मुस्करा क्र चलते हैं यह रिश्ते,
कभी पतझड़ के मौसम में,
बसंत भर बन कर मन में,धाते हैं रिश्ते,
कभी वकत के साथ बदलते हैं,
कभी वकत बदल जाता है,
किधर रहते हैं रिश्ते.
कभी इतने कमज़ोर हो जाते हैं,
जोड़ने पर भी नहीं जुड़ते रिश्ते.
क्यों इनकी नींव इतनी कमजोर होती है?
अटूट विस्वास पर क्यों नहीं चलते यह रिश्ते!!
-वंदना शर्मा
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