ऐसा क्यों होता है जैसा हम नहीं चाहते ०
किनारा सामने होता है,
मंजिल नहीं मिलती०
चांदनी का अपना असितत्व,क्यों नहीं होता,
तारे आकाश से अलग क्यों हो सकते०
नदी अकेली बहती है,
फिर भी एक दिन सागर
में,क्यों जाना पड़ता है०
वर्षा की अपनी पहचान नहीं,
बादलों के आने पर ही क्यों आती है
,ऐसा क्यों होता है,जैसा हम नहीं चह्ते०
-वंदना शर्मा
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