Sunday, November 14, 2010

बीते दिन

ऐ समय तू उढ़ रहा लगा पंख
ले जा इन्हें भी अपने संग
तू तो कभी हाथ नहीं आया
क्यों जमा गया इन्हें कर
खिढ़की दरवाज़े बंद
इंतजार में हूँ तेरे
तू मुस्कान के अच्छे लिबास में आये
बात न मान क्यों बीते दिन यद् कराए
मान ले कहना मेरा
बन जा मित्र
मेरा हरपाल ध्यान तुझ पर
क्यों पहन भेस शत्रु का
बीते दिन पल-पल याद कराए
तू बीते दिन
-वंदना शर्मा

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